शनिवार, 31 दिसंबर 2011

Welcome 2012.

Welcome to the New Year 2012. आइये हम सब नए साल का स्वागत करें. आशा करें की आने वाले वर्ष में सभी की मनोकामनाएं पूरी हों. सभी जगह शांति का वातावरण बना रहे और सभी सदबुद्धि के रास्ते पर चलें. 

मंगलवार, 22 नवंबर 2011

परिचय सम्मेलन के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू

आदि गौड़-सनाढ्य ब्राह्मण समाज समिति के तत्वावधान में १८ दिसम्बर को होने वाले परिचय सम्मेलन के लिए रविवार को अम्बालाल सनाढ्य व बाबूलाल शर्मा ने गुडिय़ा ट्रावेल्स सूरजपोल पर रजिस्ट्रेशन कर कार्य शुरू किया। इस दौरान सम्मेलन का दौरा कर आए जगदीश पाठक, कृष्ण गोपाल सनाढ्य, सन्तोष गौड़, सुरेन्द्र गौड़, नाथुलाल सनाढ्य, मदन गौड़ (नौगामा) ने मातृकुण्डिया, लाडपुरा, भीलवाड़ा, चित्तौडग़ढ़ जिले से अधिक संख्या में रजिस्ट्रेशन होने की संभावना व्यक्त की।
साभार: प्रातःकाल समाचार.

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

भाड़े की भीड़ नहीं है येः अरविंद गौड़

दिल्ली में अस्मिता नाम का जनवादी थिएटर ग्रुप चला रहे अरविंद गौड़ जनलोकपाल पर बनी टीम अन्ना के अहम सदस्य हैं। उन्होंने कहा है कि हमें पूरा भरोसा है कि यही आंदोलन सरकारी लोकपाल की शक्ल बदलने में कामयाब होगा। अरविंद ने कहा कि ये जनता की बाढ़ है और जब ऐसी बाढ़ आती है, तो सरकार तो क्या तानाशाह भी हिल जाते हैं।

अरविंद पिछले दिनों करप्शन के खिलाफ नुक्कड़-नाटकों की एक श्रंखला पूरे देश में प्रदर्शित कर चुके हैं।

हम पॉलिटिकल सिस्टम को नहीं नकार रहे, बल्कि उसे झकझोर रहे हैं। इस आंदोलन का चरित्र पूरी तरह गैर राजनीतिक है। इसमें कोई राजनीतिक चालबाजी नहीं है। यह आंदोलन केवल शहरों में ही नहीं बल्कि छोटे छोटे गांवों तक में फैल रहा है। जेपी के बाद का यह सबसे बड़ा आंदोलन है। जेपी आंदोलन और इस आंदोलन में यह फर्क है कि जेपी आंदोलन गैर कांग्रेसवाद का था, जबकि इस आंदोलन का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है।

बुधवार, 17 अगस्त 2011

राजेश गौड़ के नेतृत्व में मोटर साईकिल रैली

वाराणसी के 20 युवाओं की एक टोली स्वतंत्रता दिवस पर शहर से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मंगल पांडे के बलिया जिले स्थित गांव नगवा तक 184 किलोमीटर लम्बी मोटरसाइकिल यात्रा निकालेगी। इस दौरान ये टोली लोगों को देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले सपूत मंगल पांडे के बलिदान और त्याग के प्रति प्रेरित करेगी।

इस मोटरसाइकिल यात्रा का नेतृत्व करने वाले 37 वर्षीय राजेश गौड़ ने आईएएनएस से कहा, "हम यात्रा के जरिए लोगों को मंगल पांडे सहित अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन के बारे में बताकर उनमें त्याग और बलिदान की भावना जगाने का प्रयास करेंगे।"

गौड़ वर्ष 2004 में मोटरसाइकिल से भारत के सभी राज्यों के भ्रमण का रिकॉर्ड बना चुके हैं। ऐसा करने में उन्हें 36 दिन और 13 घंटे का समय लगा था।

उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजादी दिलाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे दी, लेकिन आज के समय में ज्यादातर लोग देश के बारे में न सोचकर सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं। इसलिए देश में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया है। लोगों को स्वतंत्रता सेनानियों की जीवन से प्रेरणा लेकर अपने अंदर त्याग की भावना जगाने की जरूरत है।

युवाओं का काफिला 14 अगस्त को सुबह 10 बजे वाराणसी के एस.एम.एस. कॉलेज से मोटरसाइकिल यात्रा की शुरुआत करेगा। मोटरसाइकिलों के साथ काफिले में एक जीप भी साथ चलेगी, जिसमें चारों तरफ तिरंगे के साथ मंगल पांडे के विशाल चित्र लगे होंगे। इस मोटरसाइकिल यात्रा में गौड़ व उनके युवा व्यवसायी मित्रों के साथ कुछ छात्र और छात्राएं भी शामिल होंगे।

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

विकास गौड़ को रजत पदक

जापान के कोबे शहर में जारी 19वीं एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप से भारत के लिए अच्छी खबर आई.
भारत की मयूखा जॉनी ने महिलाओं की लम्बी कूद स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता है वहीं डिस्कस थ्रोअर विकास गौड़ ने रजत जीता है. विकास ने अपने पांचवें प्रयास में 61.58 मीटर चक्का फेंककर भारत को पहला पदक दिलाया.

बहुत बहुत बधाई.

रविवार, 3 अप्रैल 2011

भारतीय नववर्ष (गुड़ी पड़वा )

उगादी (गुड़ी पड़वा) जिसे युगादी से भी जानते हैं, का मतलब है एक नए युग का प्रारंभ. इस वर्ष उगादी त्यौहार मनाया जा रहा है 4 अप्रैल 2011 के दिन. इस दिन विक्रमी संवत, सक संवत, सिन्धी नववर्ष तथा तेलगू और कन्नड़ नव वर्ष प्रारंभ होता है.

भारतवर्ष वह पावन भूमि है जिसने संपूर्ण ब्रह्माण्ड को अपने ज्ञान से आलोकित किया है। इसने जो ज्ञान का निदर्षन प्रस्तुत किया है वह केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्‍व के कल्याण का पोषक है। नये वर्ष का आरम्भ अर्थात् भारतीय परम्परा के अनुसार ‘वर्ष प्रतिपदा’ भी एक ऐसा ही विलक्षण उदाहरण है।भारतीय कालगणना के अनुसार इस पृथ्वी के सम्पूर्ण इतिहास की कुंजी मन्वन्तर विज्ञान मे है। इस ग्रह के संपूर्ण इतिहास को 14 भागों अर्थात् मन्वन्तरों में बाँटा गया है। एक मन्वन्तर की आयु 30 करोड़ 67 लाख और 20 हजार वर्ष होती है। इस पृथ्वी का संपूर्ण इतिहास 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का है। इसके 6 मन्वन्तर बीत चुके हैं। और सातवाँ वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है।

विश्व की प्रचलित सभी कालगणनाओं मे भारतीय कालगणना प्राचीनतम है। इसका प्रारंभ पृथ्वी पर आज से प्राय: 198 करोड़ वर्ष पूर्व वर्तमान श्वेत वराह कल्प से होता है। अत: यह कालगणना पृथ्वी पर प्रथम मानवोत्पत्ति से लेकर आज तक के इतिहास को युगात्मक पद्वति से प्रस्तुत करती है।

पृथ्वी को प्रभावित करने वाले सातों ग्रह कल्प के प्रारम्भ में एक साथ एक ही अश्विन नक्षत्र में स्थित थे। और इसी नक्षत्र से भारतीय वर्ष प्रतिपदा का प्रारम्भ होता है। अर्थात् प्रत्येक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथमा को भारतीय नववर्ष प्रारम्भ होता है जो वैज्ञानिक दृष्टि के साथ-साथ सामाजिक व सांस्कृतिक संरचना को प्रस्तुत करता है। भारत में अन्य संवत्सरों का प्रचलन बाद के कालो में प्रारम्भ हुआ जिसमें अधिकांष वर्ष प्रतिपदा को ही प्रारम्भ होते हैं। इनमे विक्रम संवत् महत्वपूर्ण है। इसका आरम्भ कलिसंवत् 3044 से माना जाता है। जिसको इतिहास में सम्राट विक्रमादित्य के द्वारा शुरु किया गया मानते हैं। इसके विषय में अलबरुनी लिखता है कि ”जो लोग विक्रमादित्य के संवत का उपयोग करते हैं वे भारत के दक्षिणी एवं पूर्वी भागो मे बसते हैं।”
इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भारतीय नववर्ष उसी नवीनता के साथ देखा जाता है। नये अन्न किसानों के घर में आ जाते हैं, वृक्ष में नये पल्लव यहाँ तक कि पशु-पक्षी भी अपना स्वरुप नये प्रकार से परिवर्तित कर लेते हैं। होलिका दहन से बीते हुए वर्ष को विदा कहकर नवीन संकल्प के साथ वाणिज्य व विकास की योजनाएं प्रारम्भ हो जाती हैं। वास्तव में परम्परागत रुप से नववर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही प्रारम्भ होता है।

रविवार, 13 मार्च 2011

होली के शुभ अवसर पर सभी समाज बंधुओं को हार्दिक शुभकामनायें।


होली के शुभ अवसर पर सभी समाज बंधुओंको हार्दिक शुभकामनायें. आइये हम सबअपने परिवार और समाज में रंग भरें।

सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

महाशिवरात्रि

महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान् शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया। तीनों भुवनों की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरां को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों व पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका रूप बड़ा अजीव है। शरीर पर मसानों की भस्म, गले में सर्पों का हार, कंठ में विष, जटाओं में जगत-तारिणी पावन गंगा तथा माथे में प्रलयंकर ज्वाला है। बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों का मंगल करते हैं और श्री-संपत्ति प्रदान करते हैं।
      
इस दिन शिवभक्त, शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर बेल-पत्र आदि चढ़ाते, पूजन करते, उपवास करते तथा रात्रि को जागरण करते हैं। शिवलिंगपर बेल-पत्र चढ़ाना, उपवास तथा रात्रि जागरण करना एक विशेष कर्म की ओर इशारा करता है।

इस दिन शिव की शादी हुई थी इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। वास्तव में शिवरात्रि का परम पर्व स्वयं परमपिता परमात्मा के सृष्टि पर अवतरित होने की स्मृति दिलाता है। यहां ‘रात्रिज् शब्द अज्ञान अन्धकार से होने वाले नैतिक पतन का द्योतक है। परमात्मा ही ज्ञान सागर है जो मानव मात्र को सत्य ज्ञान द्वारा अन्धकार से प्रकाश की ओर अथवा असत्य से सत्य की ओर ले जाते हैं।ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, स्त्री-पुरुष, बालक, युवा और वृद्ध सभी इस व्रत को कर सकते हैं। इस व्रत के विधान में सवेरे स्नानादि से निवृत्त होकर उपवास रखा जाता है।

चतुर्दशी तिथि के स्वामी शिव हैं। अत: ज्योतिष शास्त्रों में इसे परम शुभफलदायी कहा गया है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने में आती है। परंतु फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को ही महाशिवरात्रि कहा गया है।ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्य देव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा ऋतु परिवर्तन का यह समय अत्यन्त शुभ कहा गया हैं। शिव का अर्थ है कल्याण। शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। अत: महाशिवरात्रि पर सरल उपाय करने से ही इच्छित सुख की प्राप्ति होती है।

चंद्रमा शिव के मस्तक पर सुशोभित है। अत: चंद्रदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान शिव का अश्रय लिया जाता है। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है। अत: प्राय: ज्योतिषी शिवरात्रि को शिव आराधना कर कष्टों से मुक्ति पाने का सुझाव देते हैं। शिव आदि-अनादि है। सृष्टि के विनाश व पुन:स्थापन के बीच की कड़ी है। प्रलय यानी कष्ट, पुन:स्थापन यानी सुख। अत: ज्योतिष में शिव को सुखों का आधार मान कर महाशिवरात्रि पर अनेक प्रकार के अनुष्ठान करने की महत्ता कही गई है।

शिवपुराणकी विद्येश्वर-संहिता में वíणत कथा के अनुसार शिवजी के निष्कल (निराकार) स्वरूप का प्रतीक लिंग इसी पावन तिथि की महानिशामें प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। इसी कारण यह तिथि शिवरात्रि के नाम से विख्यात हो गई। जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात निराहारएवं जितेंद्रिय होकर अपनी पूर्ण शक्ति व साम‌र्थ्य द्वारा निश्चल भाव से शिवजी की यथोचित पूजा करता है, वह वर्षपर्यतशिव-पूजन करने का संपूर्ण फल मात्र शिवरात्रि को सविधि शिवार्चन से तत्काल प्राप्त कर लेता है।

महा शिवरात्रि  व्रत कैसे करें: 
  • इस दिन मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाया जाता है। अगर पास में शिवालय न हो, तो शुद्ध गीली मिट्टी से ही शिवलिंग बनाकर उसे पूजने का विधान है।
  • रात्रि को जागरण करके शिवपुराण का पाठ सुनना हरेक व्रती का धर्म माना गया है।
  • अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

बुधवार, 12 जनवरी 2011

मकर संक्रान्ति पर्व

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है जब इस पर्व को मनाया जाता है । यह त्योहार जनवरी माह के तेरहवें, चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ( जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है ) पड़ता है । मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारम्भ होती है । इसलिये इसको उत्तरायणी भी कहते हैं।
उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से 'दान का पर्व' है । इलाहाबाद में यह पर्व माघ मेले के नाम से जाना जाता है। १४ जनवरी से इलाहाबाद मे हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है। १४ दिसम्बर से १४ जनवरी का समय खर मास के नाम से जाना जाता है। और उत्तर भारत मे तो पहले इस एक महीने मे किसी भी अच्छे कार्य को अंजाम नही दिया जाता था। मसलन शादी-ब्याह नही किये जाते थे पर अब तो समय के साथ लोग काफी बदल गए है। १४ जनवरी यानी मकर संक्रान्ति से अच्छे दिनों की शुरुआत होती है । माघ मेला पहला नहान मकर संक्रान्ति से शुरू होकर शिवरात्रि तक यानी आख़िरी नहान तक चलता है। संक्रान्ति के दिन नहान के बाद दान करने का भी चलन है। बागेश्वर में बड़ा मेला होता है। वैसे गंगास्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं। इस दिन गंगा स्नान करके , तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है। समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है।

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बांटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं :- `लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला` अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो। इस दिन महिलाएं आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बांटती हैं।

बंगाल में इस पर्व पर स्नान पश्चात तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में प्रतिवर्ष विशाल मेला लगता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिए लाखों लोगों की भीड़ होती है। लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं। वर्ष में केवल एक दिन-मकर संक्रांति को यहां लोगों की अपार भीढ़ होती है। इसीलिए कहा जाता है-`सारे तीरथ बार बार लेकिन गंगा सागर एक बार।`

गुजरात में मकर संक्रांति का पर्व महिलाओं के लिए भी मौज-मस्ती का दिन होता है। हालाँकि अन्य प्रदेशों में इस दिन गली-गली गिल्ली-डंडा खेला जाता है, मगर गुजरात में घर-घर लोग पतंगबाजी का मजा लेते हैं।

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जलाता है। इस दिन अंधेरा होते ही आग जलाकर अग्नि पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियाँ आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं। बहुएं घर घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी मांगती हैं। नई बहू और नवजात बच्चे के लिए लोहड़ी का विशेष महत्व होता है। इसके साथ पारंपरिक मक्के की रोटी और सरसों की साग का भी लुत्फ उठाया जाता है।

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं। प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल, चौथे व अंतिम दिन कन्या-पोंगल। इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है। उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है।

असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं। राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। साथ ही महिलाएं किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं। अत: मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है।

मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अंतराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है। मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात भारत से दूर होता है। इसी कारण यहां रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है, किंतु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अत: इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा। अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्यशक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर संपूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग की समस्त तिथियां चंद्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किंतु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।

माना जाता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल दान मोक्ष की प्राप्त करवाता है।