रविवार, 31 मई 2009

Are you a Dwij?

A Brahmin is not supposed to claim Brahmin status by birth. He must be reborn by learning and attain Brahminical status through the achievement of a mental and cultural status befitting a Brahmin. Any one born low could become a Brahmin by elevating his learning and conduct and similarly one who had achieved Brahmanical status could be pushed to a lower strata if his conduct became to demand such relegation. A Brahmin must be "Re-born" and that is why he is called "Dwij- twice born".

It is to be noted that Vishwamitra was initially a Kshatriya king, who later chose and rose to become an ascetic rishi and was included in 'brahmrishis' (earlier brahmrishis :- Angira, Atri, Gautam, Kashyap, Bhrigu, Vashistha and Bharadwaj) 

रविवार, 24 मई 2009

मांगलिक कुंडली

ज्योतिष की परिभाषा में मंगल अग्नि प्रधान गृह होने के कारन अनिष्ट फल प्रदान करने में देर नहीं करता. यही वजह है की भावी वर वधु की कुंडली मिलाने में मांगलिक गुणों को मिलाना अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. यह परंपरागत/ सनातन मान्यता है कि यदि वर की कुंडली मांगलिक है तो वधु की कुंडली भी मांगलिक होनी चाहिए. 
किसी भी कुंडली में यदि मंगल अशुभ फल देने वाला है तो वह किसी न किसी तरह अनिष्ट करेगा ही. लेकिन मंगल की कुछ स्तिथियाँ ऐसी होतीं हैं जो वर/ वधु या फिर उनके दाम्पत्य जीवन के लिए घातक होती हैं. इन्ही कुछ विशिष्ट स्तिथि वाली कुंडलियों को ही मांगलिक कुंडली कहा जाता है. साधारण ज्ञान रखने वाला व्यक्ति भी यह जान सकता है की अमुक कुंडली मांगलिक है या नहीं.
किसी भी जन्म कुंडली में 'लग्न' कुंडली को ध्यान से देखो. लग्न कुंडली प्रायः सबसे पहले वाली कुंडली होती है. 
यदि मंगल की स्तिथि यहाँ दिए गए चित्र की किसी भी  स्तिथि से मेल खाती है तो कुंडली मांगलिक है. ज्योतिष के अनुसार अशुभ मंगल की प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादस स्थानों में उपस्थिति दांपत्य जीवन नष्ट करने वाली होती है.

मांगलिक कुंडली कोई दोष या शाप नहीं है क्योंकि, मंगल कुंडली से बाहर तो हो नहीं सकता. सिर्फ मांगलिक कुंडली जानने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुँचना कठिन है. कुंडली मिलाने में यह भी देखा जाता है की मंगल शुभ फल देने वाला है या फिर अशुभ. क्या मंगली भंग योग भी बनता है. शनि और गुरु की शुभ स्तिथि मंगल के दोषों को समाप्त कर देने वाली है.

धार्मिक परंपरा के अनुसार यदि मजबूरी में मांगलिक कन्या या वर का विवाह किसी अमांगलिक के साथ करना भी पड़े, तो विवाह मुहूर्त से पहले कन्या के फेरे विष्णु प्रतिमा से करने का उपाय मंगल को शांत करने वाला बताया है. 

तर्कसंगत यही है कि मांगलिक कुंडली होने पर, विवाह पूर्व ज्योतिषीय सलाह एक उचित समाधान हो सकता है. 

रविवार, 17 मई 2009

परम संत बाबा सूरदास जी की मूर्ति स्थापना एवं भागवत कथा ज्ञान यज्ञ समारोह

 परम संत बाबा सूरदास जी चम्बल संभाग के अति पूज्यनीय गुरु हैं जिनके शिष्यों के संख्या अनेको में है. यह संयोग की बात है की बाबा सूरदास जी ने आदि गौड़ ब्राह्मण कुल में जन्म लिया तथा चेचक से अपने नेत्र खोने के साथ बचपन से ही सन्यासी हो गए. वे भगवान राम एवं हनुमान के परम भक्त थे तथा उनके तप और साधना की पराकास्ठा उद्धर्नीय है. उन्होंने कई बार २१ दिन तक जमीन के अन्दर समाधि ले कर तप किया जिसके साक्षी कई हैं.
आदि गौड़ ब्राह्मण सभा की जौरा इकाई ने बाबा सूरदास जी के मार्ग दर्शन में श्री राम जानकी मंदिर की स्थापना सन २००१ में की. बाबा सूरदास जी जब भी जौरा आते तब श्री राम जानकी मंदिर ही उनका स्थान होता था. उन्होंने ही हर वर्ष मंदिर पर भागवत कथा ज्ञान यज्ञ करने का मार्ग प्रशस्त किया. 
इस वर्ष उनके कृपा पात्र शिष्यों ने संत बाबा सूरदास की मूर्ति की स्थापना मंदिर प्रांगण में करने का निर्णय लिया है. इसके उपलक्ष में निम्न लिखित कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे:

२२ मई २००९ : मूर्ति स्थापना तथा भागवत कथा ज्ञान यज्ञ प्रारंभ 
२९ मई २००९ : भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सम्पन्न एवं भंडारा 
कार्यक्रम स्थल : श्री राम जानकी मंदिर, चम्बल कालोनी के पास, एम् एस रोड, जौरा जिला मुरेना (मध्य प्रदेश), भारत

परम संत बाबा सूरदास जी के प्रति आस्था रखने वाले सदस्य इस महा योजन को सफल बनायेंगे एसी हमारी आशा है.  

रविवार, 10 मई 2009

Know this: Why we light a Lamp?

Light symbolizes knowledge, whereas darkness, ignorance. The Lord is the "Knowledge Principle" (chaitanya चैतन्य) who is the source, the enlivener and the illuminator of all knowledge. Hence light is worshiped as the Lord himself.

Knowledge removes ignorance just as light removes darkness. Also knowledge is a lasting inner wealth by which all outer achievement can be accomplished.

Hence we light the lamp to bow down to knowledge as the greatest of all forms of wealth. In many Indian homes, a lamp is lit daily before the altar of the Lord. In some houses it is lit at dawn, in some, twice a day – at dawn and dusk – and in a few it is maintained continuously (akhanda deepa). All auspicious functions commence with the lighting of the lamp, which is often maintained right through the occasion.

 Why not light a bulb or tube light? That too would remove darkness. But the traditional oil lamp has a further spiritual significance. The oil or ghee in the lamp symbolizes our vaasanas or negative tendencies and the wick, the ego. When lit by spiritual knowledge, the vaasanas get slowly exhausted and the ego too finally perishes. The flame of a lamp always burns upwards. Similarly we should acquire such knowledge as to take us towards higher ideals.

Whilst lighting the lamp we thus pray:

दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन: ದೀಪೋ ಜ್ಯೋತಿ ಪರಂ ಬ್ರಹ್ಮ ಡೀಪ್ ಜ್ಯೋತಿರ್ಜನಾರ್ದನ್ . Deepo jyoti parm brahm deepo jyotirjanardanh,

दीपो हरतु ये पापं संध्यादीप नमोस्तुते // ದೀಪೋ ಹರುತ್ ಏ ಪಾಪಂ ಸಂಧ್ಯದೀಪ್ ನಮೋಸ್ತುತೆ. Deepo haratu ye papm sandhyadeep namostute.

शुभं  करोति कल्याणम  आरोग्यं सुखसम्प्दाम  ಶುಭಂ ಕರೋತಿ ಕಲ್ಯಾಣಂ ಆರೋಗ್ಯಂ ಸುಖಸಂಪ್ದಾಂ Shubhm karoti kalyanm aarogym sukhsampdam,

मम बुद्धिप्रकाशस्च  दीप्ज्योतिर्नमोअस्तु ते //  ಮಮ ಬುದ್ಧಿಪ್ರಕಶಚ್  ದೀಪ್ಜ್ಯೋತಿರ್ನಮೊಅಸ್ತು ತೆ. Mam buddhiprakashach deepjyotirnamoastu te..

I prostrate to the dawn/dusk lamp; whose light is the Knowledge Principle (the Supreme Lord) the brahma and the vishnu, removes all my sins. I also prostate to the flame of lamp, whose light brings happiness, wealth and well being and also enlightens my intellegence.

Compilation from various sources... (error in translation if any is regretted.)


रविवार, 3 मई 2009

न्याय की प्रतीक्षा में श्री गोवर्धननाथ कमेटी

आज से लगभग ७० वर्ष पूर्व धार्मिक कार्यो में आस्था रखने वाले आदि गौड़ ब्राह्मण समाज के कुछ सम्मानित सदस्यों द्वारा भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा स्थली गोवर्धन में, डीग बस स्टैंड के निकट बड़ा बाज़ार, गोवर्धन में लगभग ३०० वर्ग गज जमीन क्रय की गयी। समाज के सहयोग के द्वारा तात्कालीन अध्यक्ष श्री रामकृष्ण शर्मा की देख रेख में ९ और १० फरवरी १९५७ को आयोजित भव्य कार्यक्रम में श्री गोवर्धन भगवान् की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा श्रीमान पंडित छोटेलाल शास्त्री (छाता वाले महाराज आचार्य) के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुई।

जनसहयोगिता के विस्तार को व्यवस्थित रूप देने के लिए १९७३ - ७४ में तात्कालीन अध्यक्ष वैद्य श्री रघुनाथ प्रसाद एवं श्री गोकुलचंद शर्मा के अथक प्रयाशों से सोसाइटी (श्री गोवर्धननाथ कमेटी) का पंजीकरण २६ फरवरी १९७५ को समितियों के निबंधक, लखनऊ उत्तर प्रदेश के द्वारा जारी हुआ।

कमेटी के द्वारा नियुक्त पुजारी ने किसी तरह इस मन्दिर पर कब्जा कर लिया। समाज के कुछ प्रतिष्ठित बंधुओ के सहयोग से तथा कार्यकारिणी के सदस्योँ के अथक प्रयाशों के वाबजूद इस मसले का कोई हल नहीं निकला।

अतः समाज को न्यायालय की सरण में जाना पड़ा। तब से यह मामला मथुरा सीनियर डिविजन कोर्ट नम्बर ५ में लंबित है। समाज के सहयोग से श्री गोवर्धन कमेटी न्याय पाने के लिए निरंतन प्रयत्नरत है। इस बात में कोई संदेह नहीं की मन्दिर श्री गोवर्धन नाथ आदि गौड़ ब्राह्मण समाज के देन है तथा इसका प्रबंधन श्री गोवर्धननाथ कमेटी को मिलना न्यायोचित मांग है।

इसी श्रंखला में सन २००५ से श्री पूरण चंद शर्मा, अध्यक्ष श्री गोवर्धननाथ कमेटी, समाज के अथकनीय सहयोग से न्याय के लिए प्रयाशरत है।