रविवार, 31 मई 2009
Are you a Dwij?
रविवार, 24 मई 2009
मांगलिक कुंडली
रविवार, 17 मई 2009
परम संत बाबा सूरदास जी की मूर्ति स्थापना एवं भागवत कथा ज्ञान यज्ञ समारोह
रविवार, 10 मई 2009
Know this: Why we light a Lamp?
Light symbolizes knowledge, whereas darkness, ignorance. The Lord is the "Knowledge Principle" (chaitanya चैतन्य) who is the source, the enlivener and the illuminator of all knowledge. Hence light is worshiped as the Lord himself.
Knowledge removes ignorance just as light removes darkness. Also knowledge is a lasting inner wealth by which all outer achievement can be accomplished.
Hence we light the lamp to bow down to knowledge as the greatest of all forms of wealth. In many Indian homes, a lamp is lit daily before the altar of the Lord. In some houses it is lit at dawn, in some, twice a day – at dawn and dusk – and in a few it is maintained continuously (akhanda deepa). All auspicious functions commence with the lighting of the lamp, which is often maintained right through the occasion.
Whilst lighting the lamp we thus pray:
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दन: ದೀಪೋ ಜ್ಯೋತಿ ಪರಂ ಬ್ರಹ್ಮ ಡೀಪ್ ಜ್ಯೋತಿರ್ಜನಾರ್ದನ್ . Deepo jyoti parm brahm deepo jyotirjanardanh,
दीपो हरतु ये पापं संध्यादीप नमोस्तुते // ದೀಪೋ ಹರುತ್ ಏ ಪಾಪಂ ಸಂಧ್ಯದೀಪ್ ನಮೋಸ್ತುತೆ. Deepo haratu ye papm sandhyadeep namostute.
शुभं करोति कल्याणम आरोग्यं सुखसम्प्दाम ಶುಭಂ ಕರೋತಿ ಕಲ್ಯಾಣಂ ಆರೋಗ್ಯಂ ಸುಖಸಂಪ್ದಾಂ Shubhm karoti kalyanm aarogym sukhsampdam,
मम बुद्धिप्रकाशस्च दीप्ज्योतिर्नमोअस्तु ते // ಮಮ ಬುದ್ಧಿಪ್ರಕಶಚ್ ದೀಪ್ಜ್ಯೋತಿರ್ನಮೊಅಸ್ತು ತೆ. Mam buddhiprakashach deepjyotirnamoastu te..
I prostrate to the dawn/dusk lamp; whose light is the Knowledge Principle (the Supreme Lord) the brahma and the vishnu, removes all my sins. I also prostate to the flame of lamp, whose light brings happiness, wealth and well being and also enlightens my intellegence.
Compilation from various sources... (error in translation if any is regretted.)
रविवार, 3 मई 2009
न्याय की प्रतीक्षा में श्री गोवर्धननाथ कमेटी
जनसहयोगिता के विस्तार को व्यवस्थित रूप देने के लिए १९७३ - ७४ में तात्कालीन अध्यक्ष वैद्य श्री रघुनाथ प्रसाद एवं श्री गोकुलचंद शर्मा के अथक प्रयाशों से सोसाइटी (श्री गोवर्धननाथ कमेटी) का पंजीकरण २६ फरवरी १९७५ को समितियों के निबंधक, लखनऊ उत्तर प्रदेश के द्वारा जारी हुआ।
कमेटी के द्वारा नियुक्त पुजारी ने किसी तरह इस मन्दिर पर कब्जा कर लिया। समाज के कुछ प्रतिष्ठित बंधुओ के सहयोग से तथा कार्यकारिणी के सदस्योँ के अथक प्रयाशों के वाबजूद इस मसले का कोई हल नहीं निकला।
अतः समाज को न्यायालय की सरण में जाना पड़ा। तब से यह मामला मथुरा सीनियर डिविजन कोर्ट नम्बर ५ में लंबित है। समाज के सहयोग से श्री गोवर्धन कमेटी न्याय पाने के लिए निरंतन प्रयत्नरत है। इस बात में कोई संदेह नहीं की मन्दिर श्री गोवर्धन नाथ आदि गौड़ ब्राह्मण समाज के देन है तथा इसका प्रबंधन श्री गोवर्धननाथ कमेटी को मिलना न्यायोचित मांग है।
इसी श्रंखला में सन २००५ से श्री पूरण चंद शर्मा, अध्यक्ष श्री गोवर्धननाथ कमेटी, समाज के अथकनीय सहयोग से न्याय के लिए प्रयाशरत है।